।। ॐ जय श्री राम ।।
।। ॐ नमः शिवाय ।।
।। ॐ हं हनुमते नमः।।
रामचरितमानस मुनि भावन ।
बिरचेउ संभु सुहावन पावन ।।
त्रिविध दोष दुख दारिद दावन ।
कलि कुचालि कुलि कलुष नसावन ।।
( बालकांड 34/5)
मानसजी के आरंभ में अपनी रचना के बारे में बताते हुए तुलसी बाबा कहते हैं कि यह रामचरितमानस मुनियों का प्रिय है। इस सुहावन व पावन मानस की रचना शिवजी ने की है। यह तीनों प्रकार के दोषों, दुखों, दरिद्रता एवं कलियुग के दुराचार व सब पापों का नाश करने वाला है।
प्रभु, हम सब यही चाहते हैं कि हमारे दोष दूर हो जाएँ, दुख समाप्त हो जाए व संपन्नता आ जाए। जगत के कल्याण हेतु यह शिवजी की रचना है। अस्तु जो भी इसे पढ़ेगा, गुनेगा उसका जीवन हर प्रकार से समृद्ध हो जाएगा — श्रीराम , जय राम , जय जय राम
आपका दिन मंगलमय हो,आप स्वस्थ रहे,प्रसन्न रहे।
जय श्री राम
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