प्रतिपल प्रभुपद वंदन ही जीवन का सार है, शेष सब निःस्सार है, इस प्रक्रिया को स्वांस का प्रश्रय लेकर ही आगे बढा़या जा सकता है, जैसा कि स्पष्ट भी है:-
योगिनां ह्रदये रमन्ते यः सः रामः
जो समस्त प्राणियों में रमण करता है वही राम है, और वह स्वांस ही है अतः स्वांस-स्वांस पर नाम भज,
व्रथा स्वांस ना खोय, ना जाने इस स्वांस का आवन होय न होय।
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