गुरुवार, 25 फ़रवरी 2021

विश्वकर्मा जयंती

विश्वकर्मा एक महान ऋषि और ब्रह्मज्ञानी थे। ऋग्वेद में उनका उल्लेख मिलता है। कहते हैं कि उन्होंने ही देवताओं के घर, नगर, अस्त्र-शस्त्र आदि का निर्माण किया था। वे महान शिल्पकार थे। आओ जानते हैं उनके संबंध में 10 रोचक बातें। 25 फरवरी 2021 यानी माघ शुक्ल त्रयोदशी तिथि को भगवान विश्‍वकर्माजी की जयंती है।

1.प्राचीन काल में जनकल्याणार्थ मनुष्य को सभ्य बनाने वाले संसार में अनेक जीवनोपयोगी वस्तुओं जैसे वायुयान, जलयान, कुआं, बावड़ी कृषि यन्त्र अस्त्र-शस्त्र, भवन, आभूषण, मूर्तियां, भोजन के पात्र, रथ आदि का अविष्कार करने वाले महर्षि विश्वकर्मा जगत के सर्व प्रथम शिल्पाचार्य होकर आचार्यों के आचार्य कहलाए।

2. प्राचीन समय में 1.इंद्रपुरी, 2.लंकापुरी, 3.यमपुरी, 4.वरुणपुरी, 5.कुबेरपुरी, 6.पाण्डवपुरी, 7.सुदामापुरी, 8.द्वारिका, 9.शिवमण्डलपुरी, 10.हस्तिनापुर जैसे नगरों का निर्माण विश्‍वकर्मा ने ही किया था। कहते हैं कि उन्होंने ही कर्ण का कुंडल, विष्णु का सुदर्शन चक्र, पुष्पक विमान, शंकर भगवान का त्रिशुल, यमराज का कालदंड आदि वस्तुओं का निर्माण किया था। उन्होंने ही ऋषि दधिचि की हड्डियों से दिव्यास्त्रों का निर्माण किया था।

3. भगवान विश्वकर्मा के अनेक रूपों का उल्लेख पुराणों में मिलता हैं- दो बाहु वाले, चार बाहु और दस बाहु वाले विश्‍वकर्मा। इसके अलावा एक मुख, चार मुख एवं पंचमुख वाले विश्‍वकर्मा। 

4. पुराणों में विश्वकर्मा के पांच अवतारों का वर्णन मिलता है- 1.विराट विश्वकर्मा- सृष्टि के रचयिता, 2.धर्मवंशी विश्वकर्मा- महान् शिल्प विज्ञान विधाता और प्रभात पुत्र, 3.अंगिरावंशी विश्वकर्मा- आदि विज्ञान विधाता वसु पुत्र, 4.सुधन्वा विश्वकर्म- महान् शिल्पाचार्य विज्ञान जन्मदाता अथवी ऋषि के पौत्र और 5.भृंगुवंशी विश्वकर्मा- उत्कृष्ट शिल्प विज्ञानाचार्य (शुक्राचार्य के पौत्र)।

5. ब्रह्मा के पुत्र धर्म तथा धर्म के पुत्र वास्तुदेव हुए। धर्म की वस्तु नामक पत्नी से उत्पन्न वास्तु सातवें पुत्र थे, जो शिल्पशास्त्र के आदि प्रवर्तक थे। उन्हीं वास्तुदेव की अंगिरसी नामक पत्नी से विश्वकर्मा उत्पन्न हुए थे। स्कंद पुराण के अनुसार धर्म ऋषि के आठवें पुत्र प्रभास का विवाह देव गुरु बृहस्पति की बहन भुवना ब्रह्मवादिनी से हुआ। भगवान विश्वकर्मा का जन्म इन्हीं की कोख से हुआ। महाभारत आदिपर्व अध्याय 16 श्लोक 27 एवं 28 में भी इसका स्पष्ट उल्लेख मिलता है। वराह पुराण के अ.56 में उल्लेख मिलता है कि सब लोगों के उपकारार्थ ब्रह्मा परमेश्वर ने बुद्धि से विचारकर विश्वकर्मा को पृथ्वी पर उत्पन्न किया।

6. विश्‍वकर्मा के पुत्रों से उत्पन्न हुआ महान कुल ब्रह्मणों का उपवर्ग है। राजा प्रियव्रत ने विश्वकर्मा की पुत्री बहिर्ष्मती से विवाह किया था जिनसे आग्नीध्र, यज्ञबाहु, मेधातिथि आदि 10 पुत्र उत्पन्न हुए। प्रियव्रत की दूसरी पत्नी से उत्तम, तामस और रैवत ये 3 पुत्र उत्पन्न हुए, जो अपने नाम वाले मन्वंतरों के अधिपति हुए। महाराज प्रियव्रत के 10 पुत्रों में से कवि, महावीर तथा सवन ये 3 नैष्ठिक ब्रह्मचारी थे और उन्होंने संन्यास धर्म ग्रहण किया था।

7. विश्वकर्मा के पांच महान पुत्र: विश्वकर्मा के उनके मनु, मय, त्वष्टा, शिल्पी एवं दैवज्ञ नामक पांच पुत्र थे। ये पांचों वास्तु शिल्प की अलग-अलग विधाओं में पारंगत थे। मनु को लोहे में, मय को लकड़ी में, त्वष्टा को कांसे एवं तांबे में, शिल्पी को ईंट और दैवज्ञ को सोने-चांदी में महारात हासिल थी।

8. विश्वकर्मा की जयंती कन्या संक्रांति (17 सितंबर के आसपास) के दिन आती है जबकि विश्‍वकर्मा समाज के मतानुसार माघ शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को उनकी जयंती आती है।   

माघे शुकले त्रयोदश्यां दिवापुष्पे पुनर्वसौ।

अष्टा र्विशति में जातो विशवकमॉ भवनि च॥- वशिष्ठ पुराण

9. वायु पुराण अध्याय 4 के पढ़ने से यह बात सिद्ध हो जाती है कि वास्तव में विश्वकर्मा संतान भृगु ऋषि कुल उत्पन्न हैं।

10. भारत में विश्वकर्मा समाज के लोगों को जांगिड़ ब्राह्मण का माना जाता है। सानग, सनातन, अहमन, प्रत्न और सुपर्ण नामक पांच गोत्र प्रवर्तक ऋषियों से प्रत्येक के 25-25 सन्तानें उत्पन्न हुईं जिससे विशाल विश्वकर्मा समाज का विस्तार हुआ है।


 

रविवार, 7 फ़रवरी 2021

मृत्यु का रहस्य





किरलियान फोटोग्राफी ने मनुष्य के सामने कुछ वैज्ञानिक तथ्य उजागर किये हैं। किरलियान ने मरते हुए आदमी के फोटो लिए, उसके शरीर से ऊर्जा के छल्ले बाहर लगातार विसर्जित हो रहे थे, और वो मरने के तीन दिन बाद तक भी होते रहे। मरने के तीन दिन बाद जिसे हिन्दू तीसरा मनाता है।
अब तो वह जलाने के बाद औपचारिक तौर पर उसकी हड्डियाँ उठाना ही तीसरा हो गया। यानि अभी जिसे हम मरा समझते हैं वो मरा नहीं है। आज नहीं कल वैज्ञानिक कहते हैं तीन दिन बाद भी मनुष्य को जीवित कर सकेगें। और एक मजेदार घटना किरलियान के फोटो में देखने को मिली। की जब आप क्रोध की अवस्था में होते हो तो तब वह ऊर्जा के छल्ले आपके शरीर से निकल रहे होते हैं। यानि क्रोध भी एक छोटी मृत्यु तुल्य है।
एक बात और किरलियान ने अपनी फोटो से सिद्ध की कि मरने से ठीक छह महीने पहले ऊर्जा के छल्ले मनुष्य के शरीर से निकलने लग जाते हैं। यानि मरने की प्रक्रिया छ: माह पहले शुरू हो जाती है, जैसे मनुष्य का शरीर मां के पेट में नौ महीने विकसित होने में लेता है वैसे ही उसे मिटने के लिए छ: माह का समय चाहिए। फिर तो दुर्घटना जैसी कोई चीज के लिए कोई स्थान नहीं रह जाता, हां घटना के लिए जरूर स्थान है।
भारत में हजारों साल से योगी मरने के छ:माह पहले अपनी तिथि बता देते थे। ये छ: माह कोई संयोगिक बात नहीं है। इस में जरूर कोई रहस्य होना चाहिए। कुछ और तथ्य किरलियान ने मनुष्य के जीवन के सामने रखे, एक फोटो में उसने दिखाया है, छ: महीने पहले जब उसने जिस मनुष्य को फोटो लिया तो उसके दायें हाथ में ऊर्जा प्रवाहित नहीं हो रही थी। यानि दाया हाथ उर्जा को नहीं दर्शा रहा था। जबकि दांया हाथ ठीक ठाक था, पर ठीक छ: माह बाद अचानक एक ऐक्सिडेन्ट के कारण उस आदमी का वह हाथ काटना पड़ा।
यानि हाथ की ऊर्जा छ: माह पहले ही अपना स्थान छोड़ चुकी थी। भारतीय योग तो हजारों साल से कहता आया है कि मनुष्य के स्थूल शरीर में कोई भी बिमारी आने से पहले आपके सूक्ष्म शरीर में छ: माह पहले आ जाती है। यानि छ: माह पहले अगर सूक्ष्म शरीर पर ही उसका इलाज कर दिया जाये तो बहुत सी बिमारियों पर विजय पाई जा सकती है। इसी प्रकार भारतीय योग कहता है कि मृत्यु की घटना भी अचानक नहीं घटती वह भी शरीर पर छ: माह पहले से तैयारी शुरू कर देती है। पर इस बात का एहसास हम क्यों नहीं होता।
पहली बात तो मनुष्य मृत्यु के नाम से इतना भयभीत है कि वह इसका नाम लेने से भी डरता है। दूसरा वह भौतिक वस्तुओं के साथ रहते-रहते इतना संवेदनहीन हो गया है कि उसने लगभग अपनी अतीन्द्रिय शक्तियों से नाता तोड़ लिया है। वरन और कोई कारण नहीं है। पृथ्वी का श्रेष्ठ प्राणी इतना दीन हीन। पशु पक्षी भी अतीन्द्रिय ज्ञान में उससे कहीं आगे है। साइबेरिया में आज भी कुछ ऐसे पक्षी हैं जो बर्फ गिरने के ठीक 14 दिन पहले वहां से उड़ जाते हैं। न एक दिन पहले न एक दिन बाद। जापान में आज भी ऐसी चिड़िया पाई जाती है जो भुकम्प के 12 घन्टे पहले वहाँ से गायब हो जाती है। और भी न जाने कितने पशु-पक्षी हैं जो अपनी अतीन्द्रिय शक्ति के कारण ही आज जीवित हैं।
भारत में हजारों योगी मरने की तिथि पहले ही घोषित कर देते हैं। अभी ताजा घटना विनोबा भावे जी की है। जिन्होंने महीनों पहले कह दिया था कि में शरद पूर्णिमा के दिन अपनी देह का त्याग करूंगा। ठीक महाभारत काल में भी भीष्म पितामह ने भी अपने देह त्याग के लिए दिन चुना था। कुछ तो हमारे स्थूल शरीर के उपर ऐसा घटता है, जिससे योगी जान जाते हैं कि अब हमारी मृत्यु का दिन करीब आ गया है। आम आदमी उस बदलाव को क्यों नहीं कर पाता। क्योंकि वह अपने दैनिक कार्यो के प्रति सोया हुआ है। योगी थोड़ा सजग हुआ है। वह जागने का प्रयोग कर रहा है। इसी से उस परिर्वतन को वह देख पाता है महसूस कर पाता है।
एक उदाहरण।
जब आप रात को बिस्तर पर सोने के लिए जाते है। सोने ओर निंद्रा के बीच में एक संध्या काल आता है, एक न्यूटल गीयर, पर वह पल के हज़ारवें हिस्से के समान होता है। उसे देखने के लिए बहुत होश चाहिए। आपको पता ही नहीं चल पाता कि कब तक जागे ओर कब नींद में चले गये। पर योगी सालों तक उस पर मेहनत करता है। जब वह उस संध्या काल की अवस्था से परिचित हो जाता है। मरने के ठीक छ: महीने पहले मनुष्य के चित्त की वही अवस्था सारे दिन के लिए हो जाती है। तब योगी समझ जाता है अब मेरी बड़ी संध्या का समय आ गया। पर पहले उस छोटी संध्या के प्रति सजग होना पड़ेगा। तब महासंध्या के प्रति आप जान पायेंगे।
हमारे पूरे शरीर का स्नायु तंत्र प्राण ऊर्जा का वर्तुल उल्टा कर देता है। यानि आप साँसे तो लेंगे पर उसमें प्राण तत्व नहीं ले रहे होगें। शरीर प्राण तत्व छोड़ना शुरू कर देता है।
ध्यान में बैठिए व सज़ग हो जायेगा ।

शनिवार, 6 फ़रवरी 2021

पाटण की रानी रुदाबाई का इतिहास

 

रानी रुदाबाई

पाटण की रानी रुदाबाई जिसने सुल्तान बेघारा के सीने को फाड़ कर दिल निकाल कर कर्णावती शहर के बिच में टांग दिया था एवम दूसरी ओर धड से सर अलग करके पाटन राज्य के बीचोबिच टांग दिया था.
१५वी शताब्दी इसवी सन १४६०-१४९८ पाटण राज्य गुजरात से कर्णावती ( वर्तमान अहमदाबाद ) के राजा थे राणा वीर सिंह वाघेला, यह वाघेला राजपूत राजा की एक बहुत सुन्दर रानी थी जिनका नाम था रुदाबाई पाटण राज्य बहुत ही वैभवशाली राज्य था । इस राज्य ने कई तुर्क हमले झेले थे, पर कामयाबी किसी को नहीं मिली.
सुल्तान बेघारा ने सन् १४९७ पाटण राज्य पर हमला किया राणा वीर सिंह वाघेला के पराक्रम के सामने सुल्तान बेघारा की ४०००० से अधिक संख्या की फ़ौज २ घंटे से ज्यादा टिक नहीं पाई । राणा वीर सिंह की फ़ौज २६०० से २८०० की तादात में थी क्योंकि कर्णावती और पाटण बहुत ही छोटे छोटे दो राज्य थे इनमे ज्यादा फ़ौज की आवश्यकता उतनी नहीं होती थी राणाजी की रणनीति ने ४०००० की जिहादी लूटेरो की फ़ौज को धुल चटायी थी, परन्तु द्वितिय युद्ध में राणा जी के साथ रहनेवाले निकटवर्ती मित्र घन्नू साहूकार ने राणा वीर सिंह को धोका दिया एवं सुल्तान बेघारा के साथ मिलकर राणा वीरसिंह वाघेला को मारकर उनकी स्त्री एवं धन लूटने की योजना बनाई !
सुल्तान बेघारा ने साहूकार को बताया अगर युद्ध में जीत गए तो जो मांगोगे दूंगा तब साहूकार की दृष्टि राणा वाघेला की सम्पत्ति पर थी और सुल्तान बेघारा की नज़र रानी रुदाबाई को अपने हरम में रखने की एवं पाटण राज्य की राजगद्दी पर आसीन होकर राज करने की थी । साहूकार जा मिला सुल्तान बेघारा से और सारी गुप्त जानकारी उसे प्रदान कर दी । जिस जानकारी से राणा वीर सिंह को परास्त कर रानी रुदाबाई एवं पाटण की गद्दी को हड़पा जा सकता था ।
सन १४९८ इसवी (संवत १५५५) दो बार युद्ध में परास्त होने के बाद सुल्तान बेघारा ने तीसरी बार फिरसे साहूकार से मिली जानकारी के बल पर दुगने सैन्यबल के साथ आक्रमण किया, राणा वीर सिंह की सेना ने अपने से दुगने सैन्यबल देख कर भी रणभूमि नहीं त्यागी और असीम पराक्रम और शौर्य के साथ लड़ाई की, जब राणाजी सुल्तान बेघारा के सेना को खदेड कर सुल्तान बेघारा की और बढ़ रहे थे तब उनके भरोसेमंद साथी साहूकार ने पीछे से वार कर दिया, जिससे राणाजी की रणभूमि में मृत्यु हो गयी ।
साहूकार ने जब सुल्तान बेघारा को उसके बचन अनुसार राणाजी के धन को लूटकर उनको देने का वचन याद दिलाया तब सुल्तान बेघारा ने कहा “एक गद्दार पर कोई ऐतबार नहीं करता हैं गद्दार कभी भी किसी से भी गद्दारी कर सकता हैं” । सुल्तान बेघारा ने साहूकार को हाथी के पैरो के तले फेंककर कुचल डालने का आदेश दिया और साहूकार की पत्नी एवं साहूकार की कन्या को अपने सिपाही के हरम में भेज दिया।
सुल्तान बेघारा रानी रुदाबाई को अपनी वासना का शिकार बनाने हेतु राणा जी के महल की ओर १०००० से अधिक लश्कर लेकर पंहुचा। रानी रूदा बाई के पास शाह ने अपने दूत के जरिये निकाह प्रस्ताव रखा। रानी रुदाबाई ने महल के ऊपर छावणी बनाई थी जिसमे २५०० धनुर्धारी वीरांगनाये थी, जो रानी रूदा बाई का इशारा पाते ही लश्कर पर हमला करने को तैयार थी । रानी रुदाबाई जी केवल सौंदर्य की धनि नहीं थी बल्कि शौर्य और बुद्धि की भी धनि थी उन्होंने सुल्तान बेघारा को महल द्वार के अन्दर आने को कहा सुल्तान बेघारा वासना मे अंधा होकर वैसा ही किया जैसा राणीजी ने कहा, और राणी ने समय न गंवाते हुए सुल्तान बेघारा के सीने में खंजर उतार दिया और उधर छावनी से तीरों की वर्षा होने लगी जिससे शाह का लश्कर बचकर वापस नहीं जा पाया ।
सुल्तान बेघारा को मारकर रानी रुदाबाई ने सीने को फाड़ कर दिल निकाल कर कर्णावती शहर के बिच में टांग दिया था और उसके सर को धड से अलग करके पाटण राज्य के बिच टंगवा दिया साथ ही यह चेतावनी भी दी की कोई भी अताताई भारतवर्ष पर या हिन्दू नारी पर बुरी नज़र डालेगा तो उसका यही हाल होगा । रानी रुदाबाई ने इस युद्ध के बाद जल समाधी ले ली ताकि उन्हें कोई और आक्रमणकारी अपवित्र ना कर पाए !
शत शत नमन

मंगलवार, 2 फ़रवरी 2021

ईश्वर का घर



एक बार भगवान दुविधा में पड़ गए, लोगों की बढ़ती साधना वृत्ति से वह प्रसन्न तो थे पर इससे उन्हें व्यवहारिक मुश्किलें आ रही थीं।कोई भी मनुष्य जब मुसीबत में पड़ता, तो भगवान के पास भागा-भागा आता और उन्हें अपनी परेशानियां बताता।

उनसे कुछ न कुछ मांगने लगता। भगवान इससे दु:खी हो गए थे। अंतत: उन्होंने इस समस्या के निराकरण के लिए देवताओं की बैठक बुलाई और बोले - “देवताओं, मैं

मनुष्य की रचना करके कष्ट में पड़ गया हूं।

कोई न कोई मनुष्य हर समय शिकायत ही करता रहता हैं, जिससे न तो मैं कहीं शांति पूर्वक रह सकता हूं, न ही तपस्या कर सकता हूं। आप लोग मुझे कृपया ऐसा स्थान बताएं, जहां मनुष्य नाम का प्राणी कदापि न पहुंच सके।

प्रभू के विचारों का आदर करते हुए देवताओं ने अपने-अपने विचार प्रकट किए।

 गणेश जी बोले - “आप हिमालय पर्वत की चोटी पर चले जाएं। “ भगवान ने कहा - “यह स्थान तो मनुष्य की पहुंच

में हैं। उसे वहां पहुंचने में अधिक समय नहीं लगेगा।

“इंद्रदेव ने सलाह दी कि “वह किसी महासागर में चले जाएं।

वरुण देव बोले "आप अंतरिक्ष में चले जाइए। “भगवान ने कहा - “एक दिन मनुष्य वहां भी अवश्य पहुंच जाएगा।

भगवान निराश होने लगे थे।

वह मन ही मन सोचने लगे “क्या मेरे लिए

कोई भी ऐसा गुप्त स्थान नहीं हैं, जहां मैं

शांतिपूर्वक रह सकूं। अंत में सूर्य देव बोले- “प्रभू! आप ऐसा करें कि मनुष्य के हृदय में बैठ जाएं। मनुष्य अनेक स्थान पर आपको ढूंढने में सदा उलझा रहेगा, पर वह यहाँ

आपको कदापि न तलाश करेगा।

ईश्वर को सूर्य देव की बात पसंद आ गई। उन्होंने ऐसा ही किया और वह मनुष्य के हृदय में जाकर बैठ गए। उस दिन से मनुष्य अपना दुख व्यक्त करने के लिए

ईश्वर को ऊपर, नीचे, दाएं, बाएं, आकाश, पाताल में ढूंढ रहा है पर वह मिल नहीं

रहें। मनुष्य अपने भीतर बैठे हुए ईश्वर

को नहीं देख पा रहा हैं। 

रक्षा बंधन 2023 बुधवार, 30 अगस्त

 रक्षाबन्धन भारतीय धर्म संस्कृति के अनुसार रक्षाबन्धन[ का त्योहार श्रावण माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। यह त्योहार भाई-बहन को स्नेह की डो...