रविवार, 7 फ़रवरी 2021

मृत्यु का रहस्य





किरलियान फोटोग्राफी ने मनुष्य के सामने कुछ वैज्ञानिक तथ्य उजागर किये हैं। किरलियान ने मरते हुए आदमी के फोटो लिए, उसके शरीर से ऊर्जा के छल्ले बाहर लगातार विसर्जित हो रहे थे, और वो मरने के तीन दिन बाद तक भी होते रहे। मरने के तीन दिन बाद जिसे हिन्दू तीसरा मनाता है।
अब तो वह जलाने के बाद औपचारिक तौर पर उसकी हड्डियाँ उठाना ही तीसरा हो गया। यानि अभी जिसे हम मरा समझते हैं वो मरा नहीं है। आज नहीं कल वैज्ञानिक कहते हैं तीन दिन बाद भी मनुष्य को जीवित कर सकेगें। और एक मजेदार घटना किरलियान के फोटो में देखने को मिली। की जब आप क्रोध की अवस्था में होते हो तो तब वह ऊर्जा के छल्ले आपके शरीर से निकल रहे होते हैं। यानि क्रोध भी एक छोटी मृत्यु तुल्य है।
एक बात और किरलियान ने अपनी फोटो से सिद्ध की कि मरने से ठीक छह महीने पहले ऊर्जा के छल्ले मनुष्य के शरीर से निकलने लग जाते हैं। यानि मरने की प्रक्रिया छ: माह पहले शुरू हो जाती है, जैसे मनुष्य का शरीर मां के पेट में नौ महीने विकसित होने में लेता है वैसे ही उसे मिटने के लिए छ: माह का समय चाहिए। फिर तो दुर्घटना जैसी कोई चीज के लिए कोई स्थान नहीं रह जाता, हां घटना के लिए जरूर स्थान है।
भारत में हजारों साल से योगी मरने के छ:माह पहले अपनी तिथि बता देते थे। ये छ: माह कोई संयोगिक बात नहीं है। इस में जरूर कोई रहस्य होना चाहिए। कुछ और तथ्य किरलियान ने मनुष्य के जीवन के सामने रखे, एक फोटो में उसने दिखाया है, छ: महीने पहले जब उसने जिस मनुष्य को फोटो लिया तो उसके दायें हाथ में ऊर्जा प्रवाहित नहीं हो रही थी। यानि दाया हाथ उर्जा को नहीं दर्शा रहा था। जबकि दांया हाथ ठीक ठाक था, पर ठीक छ: माह बाद अचानक एक ऐक्सिडेन्ट के कारण उस आदमी का वह हाथ काटना पड़ा।
यानि हाथ की ऊर्जा छ: माह पहले ही अपना स्थान छोड़ चुकी थी। भारतीय योग तो हजारों साल से कहता आया है कि मनुष्य के स्थूल शरीर में कोई भी बिमारी आने से पहले आपके सूक्ष्म शरीर में छ: माह पहले आ जाती है। यानि छ: माह पहले अगर सूक्ष्म शरीर पर ही उसका इलाज कर दिया जाये तो बहुत सी बिमारियों पर विजय पाई जा सकती है। इसी प्रकार भारतीय योग कहता है कि मृत्यु की घटना भी अचानक नहीं घटती वह भी शरीर पर छ: माह पहले से तैयारी शुरू कर देती है। पर इस बात का एहसास हम क्यों नहीं होता।
पहली बात तो मनुष्य मृत्यु के नाम से इतना भयभीत है कि वह इसका नाम लेने से भी डरता है। दूसरा वह भौतिक वस्तुओं के साथ रहते-रहते इतना संवेदनहीन हो गया है कि उसने लगभग अपनी अतीन्द्रिय शक्तियों से नाता तोड़ लिया है। वरन और कोई कारण नहीं है। पृथ्वी का श्रेष्ठ प्राणी इतना दीन हीन। पशु पक्षी भी अतीन्द्रिय ज्ञान में उससे कहीं आगे है। साइबेरिया में आज भी कुछ ऐसे पक्षी हैं जो बर्फ गिरने के ठीक 14 दिन पहले वहां से उड़ जाते हैं। न एक दिन पहले न एक दिन बाद। जापान में आज भी ऐसी चिड़िया पाई जाती है जो भुकम्प के 12 घन्टे पहले वहाँ से गायब हो जाती है। और भी न जाने कितने पशु-पक्षी हैं जो अपनी अतीन्द्रिय शक्ति के कारण ही आज जीवित हैं।
भारत में हजारों योगी मरने की तिथि पहले ही घोषित कर देते हैं। अभी ताजा घटना विनोबा भावे जी की है। जिन्होंने महीनों पहले कह दिया था कि में शरद पूर्णिमा के दिन अपनी देह का त्याग करूंगा। ठीक महाभारत काल में भी भीष्म पितामह ने भी अपने देह त्याग के लिए दिन चुना था। कुछ तो हमारे स्थूल शरीर के उपर ऐसा घटता है, जिससे योगी जान जाते हैं कि अब हमारी मृत्यु का दिन करीब आ गया है। आम आदमी उस बदलाव को क्यों नहीं कर पाता। क्योंकि वह अपने दैनिक कार्यो के प्रति सोया हुआ है। योगी थोड़ा सजग हुआ है। वह जागने का प्रयोग कर रहा है। इसी से उस परिर्वतन को वह देख पाता है महसूस कर पाता है।
एक उदाहरण।
जब आप रात को बिस्तर पर सोने के लिए जाते है। सोने ओर निंद्रा के बीच में एक संध्या काल आता है, एक न्यूटल गीयर, पर वह पल के हज़ारवें हिस्से के समान होता है। उसे देखने के लिए बहुत होश चाहिए। आपको पता ही नहीं चल पाता कि कब तक जागे ओर कब नींद में चले गये। पर योगी सालों तक उस पर मेहनत करता है। जब वह उस संध्या काल की अवस्था से परिचित हो जाता है। मरने के ठीक छ: महीने पहले मनुष्य के चित्त की वही अवस्था सारे दिन के लिए हो जाती है। तब योगी समझ जाता है अब मेरी बड़ी संध्या का समय आ गया। पर पहले उस छोटी संध्या के प्रति सजग होना पड़ेगा। तब महासंध्या के प्रति आप जान पायेंगे।
हमारे पूरे शरीर का स्नायु तंत्र प्राण ऊर्जा का वर्तुल उल्टा कर देता है। यानि आप साँसे तो लेंगे पर उसमें प्राण तत्व नहीं ले रहे होगें। शरीर प्राण तत्व छोड़ना शुरू कर देता है।
ध्यान में बैठिए व सज़ग हो जायेगा ।

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