एक बार भगवान दुविधा में पड़ गए, लोगों की बढ़ती साधना वृत्ति से वह प्रसन्न तो थे पर इससे उन्हें व्यवहारिक मुश्किलें आ रही थीं।कोई भी मनुष्य जब मुसीबत में पड़ता, तो भगवान के पास भागा-भागा आता और उन्हें अपनी परेशानियां बताता।
उनसे कुछ न कुछ मांगने लगता। भगवान इससे दु:खी हो गए थे। अंतत: उन्होंने इस समस्या के निराकरण के लिए देवताओं की बैठक बुलाई और बोले - “देवताओं, मैं
मनुष्य की रचना करके कष्ट में पड़ गया हूं।
कोई न कोई मनुष्य हर समय शिकायत ही करता रहता हैं, जिससे न तो मैं कहीं शांति पूर्वक रह सकता हूं, न ही तपस्या कर सकता हूं। आप लोग मुझे कृपया ऐसा स्थान बताएं, जहां मनुष्य नाम का प्राणी कदापि न पहुंच सके।
प्रभू के विचारों का आदर करते हुए देवताओं ने अपने-अपने विचार प्रकट किए।
गणेश जी बोले - “आप हिमालय पर्वत की चोटी पर चले जाएं। “ भगवान ने कहा - “यह स्थान तो मनुष्य की पहुंच
में हैं। उसे वहां पहुंचने में अधिक समय नहीं लगेगा।
“इंद्रदेव ने सलाह दी कि “वह किसी महासागर में चले जाएं।
वरुण देव बोले "आप अंतरिक्ष में चले जाइए। “भगवान ने कहा - “एक दिन मनुष्य वहां भी अवश्य पहुंच जाएगा।
भगवान निराश होने लगे थे।
वह मन ही मन सोचने लगे “क्या मेरे लिए
कोई भी ऐसा गुप्त स्थान नहीं हैं, जहां मैं
शांतिपूर्वक रह सकूं। अंत में सूर्य देव बोले- “प्रभू! आप ऐसा करें कि मनुष्य के हृदय में बैठ जाएं। मनुष्य अनेक स्थान पर आपको ढूंढने में सदा उलझा रहेगा, पर वह यहाँ
आपको कदापि न तलाश करेगा।
ईश्वर को सूर्य देव की बात पसंद आ गई। उन्होंने ऐसा ही किया और वह मनुष्य के हृदय में जाकर बैठ गए। उस दिन से मनुष्य अपना दुख व्यक्त करने के लिए
ईश्वर को ऊपर, नीचे, दाएं, बाएं, आकाश, पाताल में ढूंढ रहा है पर वह मिल नहीं
रहें। मनुष्य अपने भीतर बैठे हुए ईश्वर
को नहीं देख पा रहा हैं।
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