रविवार, 31 जनवरी 2021

संकष्टी चतुर्थी

 


आज संकष्टी चतुर्थी है। माघ मास की इस तिथि को माताएं गणेश जी की पूजा उपासना करती हैं। व्रत रहती हैं। उद्देश्य जैसा समझ पा रहा हूं संतानों को सदैव संकट मुक्त रखने अथवा संकट आने पर उबारने का अनुष्ठान है। सनातन धर्म में श्री गणेश जी को विघ्न हरण करने वाले देवता की मान्यता है। मां स्वतः व्रत रहकर प्रथम पूज्य विघ्नहर्ता श्री गणेश जी की आराधना संतानों के मंगल विधान हेतु   करती हैं  । मैं 55 साल से अधिक पहले अपने बचपन को याद करता हूं । इस तिथि को अनुष्ठान के समय कही जाने वाली कथाओं में एक कथा कई संदेश और आत्म संतोष देती है। संकष्टी चतुर्थी के अनुष्ठान में अनिवार्य रुप से तिल और गुड़ का महत्व है ।मां कहा करती थी एक गरीब परिवार था। ग्रह स्वामी मजदूरी करके घर चलाता था। अनिवार्य आवश्यकताएं भी पूरी नहीं हो पाती थी। संकष्टी  चतुर्थी को केवल एक  दिन बचा था । गुड़ और तिल खरीदने भर को पैसे नहीं थे । मां छटपटा रही थी कि बच्चों के जीवन में संकट न आ जाए। थोड़ी मात्रा में ही गुड़ और तिल होते तो संकट हर्ता की पूजा विधि पूर्वक संतानों के लिए हो जाती ।पत्नी की व्यथा से  पति भी बेचैन था। बच्चों के लिए साल भर में एक  बार पूजा ।आज कहीं दिहाड़ी  पर काम तक नहीं मिला । उसने पत्नी से शाम को कहा वह गुड़ और तिल उधार ले आएगा ।मजदूरी कर के भुगतान कर देगा। कई जगह भटका । हाथ फैलाया । गिड़गिड़ाया ।उसे उधार तक कहीं नहीं मिल सका । उधार देने वालों ने केवल इसलिए  बहाना बनाकर टाल दिया कि बेहद गरीब है । पता नहीं कब वापस कर पाएगा  ! अब रात हो रही थी । वह घर नहीं लौटा। सोच रहा था तिल और गुड़ न होने पर विधिपूर्वक पूजा न हो पाएगी । कहीं बच्चों का अनिष्ट न हो जाए। पत्नी व्रत तो रहेगी। वैसे ही उसे कहां रोज भरपेट खाना नसीब होता है। बच्चों तक को आधा पेट खिलाकर कई कई दिन फांके करना पड़ता है। उसकी जिंदगी में तो आए दिन उपवास है। बच्चों का मंगल विधान सोचते-सोचते टूट रहा था ।कहीं इस चिंता में पत्नी का प्राणांत  न हो जाए। चिंता में निमग्न छठपटाते हुए उसके मन में बच्चों के लिए तैरने का अजीब भाव आ गया ।आज की रात चोरी करके गुड़ और तिल लाएगा । बड़े लोगों के घरों में उत्तर पाना आसान नहीं है । क्रोध में बड़बड़ाने लगा। दिन में लूटते हैं  । रात में ताकते हैं । सोचते सोचते आधी रात के बाद छप्पर की थूनी के सहारे वह एक घर की छत पर चढ़ गया । वह लटककर आंगन में कूद गया । धीरे से बड़ी कोठरी में घुसा। वहां एक महिला सो रही थी । साधारण किसान का घर था कोठरी में मिट्टी के बर्तनों में तिल गुड़ आदि देखकर खुश हो गया । उसे तो बच्चों की खातिर केवल एक- एक मुट्ठी चोरी करना था ।उसके पास चोरी करके निकल जाने का समय था ।महिला गहरी निद्रा में थी। अचानक उसके दिल में तूफान उठा । चोरी करके पूजा ! बच्चों का विधान ! वह तिल और गुड़ कोठरी की देहरी पर जलते दीए की रोशनी में देखता रहा ।अब उसका  धैर्य टूट गया। चिल्लाने लगा । गुड़ छूए  तो पाप , तिल छुऐ तो पाप । उसे गुड़ और तिल छूने में ही पाप का भय लगने लगा। महिला की नींद आवाज सुनकर टूट गई। महिला चिल्लाई  ,चोर  चोर  ! वह भागा नहीं? स्तब्ध खड़ा हो गया । बगल के कमरे से उस महिला का लड़का आवाज सुनकर आ गया । चोर पकड़ा गया ।महिला ने कडे श्वर में लड़के से कहा मारना नहीं  ! महिला ने चोर से पूछा , पाप- पाप क्या बक रहे थे  ? चोर ने कहा मुझे जेल भिजवा दो। मैं चोर हूं । महिला ने कहा यह कैसा चोर है  ! पाप -पाप बकता  है। जेल भेजने को कह रहा है। ऐसा कोई चोर तो नहीं करता । महिला ने जोर देकर कहा माजरा क्या है ।वह पूरी बात उगल बैठा ।महिला ने कहा तुम धन्नासेठों के यहां उधार मांगने गए उनके पास दिल नहीं होता। वह गरीब को नहीं पहचानते । किसी मामूली किसान मजदूर के घर जाते तो पूजा भरकी सामग्री तो मिल ही जाती। वह उधार भी नहीं होती। महिला ने कहा मैं धनी नहीं हूं । मेरा दिल धनी है। सभी औरतें पूजा करते  वक्त यही मांगती हैं कि भगवान सब की संतानों , पति की रक्षा करना । सभी में  तो हम भी आ जाते हैं । अपने लड़के से कहा घर में तिल गुड़ के साथ ही जो भी सामान है आधा  उसे दे दो । महिला ने आग जलाई । उसने कहा ठंड लग गई होगी । आग ताप लो। गुड खिलाया। गर्म करके पानी पिलाया। इतनी ही देर में लड़के ने सामान पोटलियों में बांधकर एक  बोरी में भर् दी । महिला ने घर का दरवाजा खोला ।उसे विदा किया । चलते समय  चोर ने महिला के चरणों में मत्था टेक दिया । महिला ने चोर को डांटते हुए कहा कि बहु से चोरी की कोशिश की घटना मत कहना । बस इतना कहना! एक मां मिली थी। उसने पूजा के लिए जबरदस्ती इतना सामान लाद दिया। और सुनो जब कभी जरूरत हो आ जाना ।कभी धनी आदमी के सामने हाथ मत फैलाना। गरीब ही गरीब की मदद करता है ।जाए गणेश भगवान की।

शनिवार, 30 जनवरी 2021

बौधायन :- भारत के प्राचीन गणितज्ञ

 


बौधायन भारत के प्राचीन गणितज्ञ और शुल्व सूत्र तथा श्रौत सूत्र के रचयिता हैं। पाइथागोरस के सिद्धांत से पूर्व ही बौधायन ने ज्यामिति के सूत्र रचे थे लेकिन आज विश्व में यूनानी ज्या‍मितिशास्त्री पाइथागोरस और यूक्लिड के सिद्धांत ही पढ़ाए जाते हैं।

दरअसल, 2800 वर्ष (800 ईसापूर्व) बौधायन ने रेखागणित, ज्यामिति के महत्वपूर्ण नियमों की खोज की थी। उस समय भारत में रेखागणित, ज्यामिति या त्रिकोणमिति को शुल्व शास्त्र कहा जाता था।


शुल्व शास्त्र के आधार पर विविध आकार-प्रकार की यज्ञवेदियां बनाई जाती थीं। दो समकोण समभुज चौकोन के क्षेत्रफलों का योग करने पर जो संख्या आएगी उतने क्षेत्रफल का 'समकोण' समभुज चौकोन बनाना और उस आकृति का उसके क्षेत्रफल के समान के वृत्त में परिवर्तन करना, इस प्रकार के अनेक कठिन प्रश्नों को बौधायन ने सुलझाया।

आर्यभट्ट ने जर्मनी के खगोलविद् कॉपरनिकस से करीब 1,000 वर्ष पहले पृथ्वी के गोल आकार और इसके धुरी पर चक्कर लगाने की पुष्टि की। आइजक न्यूटन से पहले ब्रह्मगुप्त ने गुरुत्वाकर्षण के नियम की पुष्टि की थी। प्राचीन भारतीय वैज्ञानिक बौधायन ने पाइथागोरस से काफी पहले पाइथागोरस के सिद्धांत की खोज की। मशहूर रूसी इतिहासकार के मुताबिक ईसा मसीह से पहले ही भारत ने प्लास्टिक सर्जरी का हुनर हासिल कर लिया था और अस्पताल बनाने वाला यह पहला देश था। इसी तरह के कई उदाहरण और प्रमाण दिए जा सकते हैं जिससे यह सिद्ध होता है कि भारत में महान गणितज्ञ हुए हैं जिन्होंने पश्‍चिमी जगत की खोज के पूर्व ही ही सबकुछ खोज लिया था।

बसंत पंचमी

 


इस साल 16 फरवरी को बसंत पंचमी का त्योहार मनाया जाएगा. हिंदू धर्म में बसंत पंचमी का खास महत्व है. इस दिन विद्या की देवी मां सरस्वती की पूजा अर्चना की जाती है. हर साल माघ महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को बसंत पंचमी मनाई जाती है. इस दिन से बंसत ऋतु की शुरुआत होती है. इस ऋतु का स्वागत करने के लिए माघ महीने के पांचवे दिन भगवान विष्णु कामदेव की पूजा की जाती है, इसीलिए भी इसे बसंत पंचमी कहा जाता है.

बसंत पंचमी पूजा का शुभ मुहूर्त-

इस साल बसंत पंचमी पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 6:59 बजे से 12: 35 बजे तक करीब 05 घंटे 36 मिनट का रहेगा.

बसंत पंचमी के दिन इस तरह करें मां सरस्वती की पूजा-

बसंत पंचमी के दिन प्रात:काल स्नान करें. इसके बाद पीला, बसंती या सफेद रंग का वस्त्र धारण करें. अब पूजा के लिए मंदिर की साफ-सफाई कर लें. इसके बाद चौकी पर पीला वस्त्र बिछाकर उस पर मां सरस्वती की मूर्ति स्थापित करें. अब देवी सरस्वती की मूर्ति पर चंदन का तिलक लगाकर केसर, रौली, हल्दी, चावल, पीले फूल अर्पित करें. मां सरस्वती को श्वेत चंदन पीले तथा सफ़ेद पुष्प दाएं हाथ से अर्पण करें. इसके बाद दही, मिश्री, हलवा, बूंदी या बूंदी के लड्डू का भोग लगाएं. मां सरस्वती के मूल मंत्र ॐ ऐं सरस्वत्यै नमः मंत्र का जाप करें. मां सरस्वती सच्चे दिल से पूजा करने वाले भक्तों की सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करती है. बसंत पंचमी के दिन माता सरस्वती की पूजा करने से बुद्धि, ज्ञान विद्या की प्राप्ति होती है.

बसंत पंचमी के पूजा का महत्व-

इस दिन विशेष रूप से लोगों को अपने घर में सरस्वती यंत्र स्थापित करना चाहिए. मां सरस्वती का संबंध बुद्धि से है, ज्ञान से है. यदि आपके बच्चे का पढ़ाई में मन नहीं लगता है, यदि आपके जीवन में निराशा का भाव है तो बंसत पंचमी के दिन मां सरस्वती का पूजन अवश्य करें.

इन मंत्रों का भी करें जाप-

या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना।
या ब्रह्माच्युतशंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा ॥

...इसलिए होती है बसंत पंचमी के दिन सरस्वती पूजा

यह त्योहार हर साल माघ मास में शुक्ल पक्ष की पंचमी के दिन मनाया जाता है. मान्यता है कि इस दिन मां सरस्वती का जन्म हुआ था. शास्त्रों एवं पुराणों कथाओं के अनुसार बसंत पंचमी सरस्वती पूजा को लेकर एक बहुत ही रोचक कथा है-

मान्यताओं के मुताबिक, सृष्टि के प्रारंभ में भगवान विष्णु की आज्ञा से ब्रह्मा ने मनुष्य की रचना की. लेकिन अपने सर्जना से वे संतुष्ट नहीं थे. उदासी से सारा वातावरण मूक सा हो गया था. यह देखकर ब्रह्माजी अपने कमण्डल से जल छिड़का. उन जलकणों के पड़ते ही पेड़ों से एक शक्ति उत्पन्न हुई जो दोनों हाथों से वीणा बजा रही थी तथा दो हाथों में पुस्तक माला धारण की हुई जीवों को वाणी दान की, इसलिये उस देवी को सरस्वती कहा गया.

सोमवार, 25 जनवरी 2021

श्रीरामरक्षास्तोत्रम्

Ramayana
श्रीरामरक्षास्तोत्रम्

श्रीरामरक्षास्तोत्रम्


ॐ अस्य श्रीरामरक्षास्तोत्रमन्त्रस्य बुधकौशिक ऋषिः श्रीसीतारामचन्द्रो देवता अनुष्टुप्‌छन्दः सीता शक्तिः श्रीमान् हनुमान् कीलकं श्रीरामचन्द्रप्रीत्यर्थे रामरक्षास्तोत्रजपे विनियोगः ⁠।


अथ ध्यानम्


ध्यायेदाजानुबाहुं धृतशरधनुषं बद्धपद्मासनस्थं

पीतं वासो वसानं नवकमलदलस्पर्धिनेत्रं प्रसन्नम् ⁠।

वामाङ्कारूढसीतामुखकमलमिलल्लोचनं नीरदाभं

नानालङ्कारदीप्तं दधतमुरुजटामण्डलं रामचन्द्रम् ⁠।⁠।


स्तोत्रम्


चरितं रघुनाथस्य शतकोटिप्रविस्तरम् ⁠।

एकैकमक्षरं पुंसां महापातकनाशनम् ⁠।⁠।⁠१⁠।⁠।

ध्यात्वा नीलोत्पलश्यामं रामं राजीवलोचनम् ⁠।

जानकीलक्ष्मणोपेतं जटामुकुटमण्डितम् ⁠।⁠।⁠२⁠।⁠।


सासितूणधनुर्बाणपाणिं नक्तंचरान्तकम् ⁠।

स्वलीलया जगत्त्रातुमाविर्भूतमजं विभुम् ⁠।⁠।⁠३⁠।⁠।


रामरक्षां पठेत्प्राज्ञः पापघ्नीं सर्वकामदाम् ⁠।

शिरो मे राघवः पातु भालं दशरथात्मजः ⁠।⁠।⁠४⁠।⁠।


कौसल्येयो दृशौ पातु विश्वामित्रप्रियः श्रुती ⁠।


घ्राणं पातु मखत्राता मुखं सौमित्रिवत्सलः ⁠।⁠।⁠५⁠।⁠।

जिह्वां विद्यानिधिः पातु कण्ठं भरतवन्दितः ⁠।

स्कन्धौ दिव्यायुधः पातु भुजौ भग्नेशकार्मुकः ⁠।⁠।⁠६⁠।⁠।

करौ सीतापतिः पातु हृदयं जामदग्न्यजित् ⁠।

मध्यं पातु खरध्वंसी नाभिं जाम्बवदाश्रयः ⁠।⁠।⁠७⁠।⁠।

सुग्रीवेशः कटी पातु सक्थिनी हनुमत्प्रभुः ⁠।

ऊरू रघूत्तमः पातु रक्षःकुलविनाशकृत् ⁠।⁠।⁠८⁠।⁠।

जानुनी सेतुकृत्पातु जङ्घे दशमुखान्तकः ⁠।

पादौ विभीषणश्रीदः पातु रामोऽखिलं वपुः ⁠।⁠।⁠९⁠।⁠।

एतां रामबलोपेतां रक्षां यः सुकृती पठेत् ⁠।

स चिरायुः सुखी पुत्री विजयी विनयी भवेत् ⁠।⁠।⁠१०⁠।⁠।

पातालभूतलव्योमचारिणश्छद्मचारिणः ⁠।

न द्रष्टुपमपि शक्तास्ते रक्षितं रामनामभिः ⁠।⁠।⁠११⁠।⁠।

रामेति रामभद्रेति रामचन्द्रेति वा स्मरन् ⁠।

नरो न लिप्यते पापैर्भुक्तिं मुक्तिं च विन्दति ⁠।⁠।⁠१२⁠।⁠।

जगज्जैत्रैकमन्त्रेण रामनाम्नाभिरक्षितम् ⁠।

यः कण्ठे धारयेत्तस्य करस्थाः सर्वसिद्धयः ⁠।⁠।⁠१३⁠।⁠।

वज्रपञ्जरनामेदं यो रामकवचं स्मरेत् ⁠।

अव्याहताज्ञः सर्वत्र लभते जयमङ्गलम् ⁠।⁠।⁠१४⁠।⁠।


आदिष्टवान्यथा स्वप्ने रामरक्षामिमां हरः ⁠।

तथा लिखितवान्प्रातः प्रबुद्धो बुधकौशिकः ⁠।⁠।⁠१५⁠।⁠।


आरामः कल्पवृक्षाणां विरामः सकलापदाम् ⁠।

अभिरामस्त्रिलोकानां रामः श्रीमान्स नः प्रभुः ⁠।⁠।⁠१६⁠।⁠।


तरुणौ रूपसम्पन्नौ सुकुमारौ महाबलौ ⁠।

पुण्डरीकविशालाक्षौ चीरकृष्णाजिनाम्बरौ ⁠।⁠।⁠१७⁠।


फलमूलाशिनौ दान्तौ तापसौ ब्रह्मचारिणौ ⁠।

पुत्रौ दशरथस्यैतौ भ्रातरौ रामलक्ष्मणौ ⁠।⁠।⁠१८⁠।⁠।


शरण्यौ सर्वसत्त्वानां श्रेष्ठौ सर्वधनुष्मताम् ⁠।

रक्षःकुलनिहन्तारौ त्रायेतां नो रघूत्तमौ ⁠।⁠।⁠१९⁠।⁠।

आत्तसज्जधनुषाविषुस्पृशावक्षयाशुगनिषङ्गसङ्गिनौ ⁠।

रक्षणाय मम रामलक्ष्मणावग्रतःपथि सदैव गच्छताम् ⁠।⁠।⁠२०⁠।⁠।

सन्नद्धः कवची खड्‌गी चापबाणधरो युवा ⁠।

गच्छन्मनोरथान्नश्च रामः पातु सलक्ष्मणः ⁠।⁠।⁠२१⁠।⁠।

रामो दाशरथिः शूरो लक्ष्मणानुचरो बली ⁠।

काकुत्स्थः पुरुषः पूर्णः कौसल्येयो रघूत्तमः ⁠।⁠।⁠२२⁠।⁠।

वेदान्तवेद्यो यज्ञेशः पुराणपुरुषोत्तमः ⁠।

जानकीवल्लभः श्रीमानप्रमेयपराक्रमः ⁠।⁠।⁠२३⁠।⁠।

इत्येतानि जपन्नित्यं मद्भक्तः श्रद्धयान्वितः ⁠।

अश्वमेधाधिकं पुण्यं सम्प्राप्नोति न संशयः ⁠।⁠।⁠२४⁠।⁠।

रामं दूर्वादलश्यामं पद्माक्षं पीतवाससम् ⁠।

स्तुवन्ति नामभिर्दिव्यैर्न ते संसारिणो नराः ⁠।⁠।⁠२५⁠।⁠।

रामं लक्ष्मणपूर्वजं रघुवरं सीतापतिं सुन्दरं

काकुत्स्थं करुणार्णवं गुणनिधिं विप्रप्रियं धार्मिकम् ⁠।

राजेन्द्रं सत्यसन्धं दशरथतनयं श्यामलं शान्तमूर्तिं

वन्दे लोकाभिरामं रघुकुलतिलकं राघवं रावणारिम् ⁠।⁠।⁠२६⁠।⁠।

रामाय रामभद्राय रामचन्द्राय वेधसे ⁠।

रघुनाथाय नाथाय सीतायाः पतये नमः ⁠।⁠।⁠२७⁠।⁠।

श्रीराम राम रघुनन्दन राम राम

श्रीराम राम भरताग्रज राम राम ⁠।

श्रीराम राम रणकर्कश राम राम

श्रीराम राम शरणं भव राम राम ⁠।⁠।⁠२८⁠।⁠।

श्रीरामचन्द्रचरणौ मनसा स्मरामि

श्रीरामचन्द्रचरणौ वचसा गृणामि ⁠।

श्रीरामचन्द्रचरणौ शिरसा नमामि

श्रीरामचन्द्रचरणौ शरणं प्रपद्ये ⁠।⁠।⁠२९⁠।⁠।

माता रामो मत्पिता रामचन्द्रः
स्वामी रामो मत्सखा रामचन्द्रः ⁠।

सर्वस्वं मे रामचन्द्रो दयालु-
र्नान्यं जाने नैव जाने न जाने ⁠।⁠।⁠३०⁠।⁠।

दक्षिणे लक्ष्मणो यस्य वामे च जनकात्मजा ⁠।

पुरतो मारुतिर्यस्य तं वन्दे रघुनन्दनम् ⁠।⁠।⁠३१⁠।⁠।

लोकाभिरामं रणरङ्गधीरं

राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम् ⁠।

कारुण्यरूपं करुणाकरं तं

श्रीरामचन्द्रं शरणं प्रपद्ये ⁠।⁠।⁠३२⁠।⁠।

मनोजवं मारुततुल्यवेगं

जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम् ⁠।

वातात्मजं वानरयूथमुख्यं

श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये ⁠।⁠।⁠३३⁠।⁠।

कूजन्तं रामरामेति मधुरं मधुराक्षरम् ⁠।

आरुह्य कविताशाखां वन्दे वाल्मीकिकोकिलम् ⁠।⁠।⁠३४⁠।⁠।

आपदामपहर्तारं दातारं सर्वसम्पदाम् ⁠।

लोकाभिरामं श्रीरामं भूयो भूयो नमाम्यहम् ⁠।⁠।⁠३५⁠।⁠।

भर्जनं भवबीजानामर्जनं सुखसम्पदाम् ⁠।

तर्जनं यमदूतानां रामरामेति गर्जनम् ⁠।⁠।⁠३६⁠।⁠।

रामो राजमणि: सदा विजयते रामं रमेशं भजे

रामेणाभिहता निशाचरचमू रामाय तस्मै नम: ⁠।

रामान्नास्ति परायणं परतरं रामस्य दासोऽस्म्यहं

रामे चित्तलयः सदा भवतु मे भो राम मामुद्धर ⁠।⁠।⁠३७⁠।⁠।

राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे ⁠।
सहस्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने ⁠।⁠।⁠३८⁠।⁠।

इति श्रीबुधकौशिकमुनिविरचितं श्रीरामरक्षास्तोत्रं सम्पूर्णम् ⁠।

अर्थ 

इस रामरक्षास्तोत्र-मन्त्रके बुधकौशिक ऋषि हैं। सीता और रामचन्द्र देवता हैं, अनुष्टुप् छन्द है, सीता शक्ति हैं, श्रीमान् हनुमान्‌जी कीलक हैं तथा श्रीरामचन्द्रजीकी प्रसन्नताके लिये रामरक्षास्तोत्रके जपमें विनियोग किया जाता है।


ध्यान—जो धनुष-बाण धारण किये हुए हैं, बद्धपद्मासनसे विराजमान हैं, पीताम्बर पहने हुए हैं, जिनके प्रसन्न नयन नूतन कमलदलसे स्पर्धा करते तथा वामभागमें विराजमान श्रीसीताजीके मुखकमलसे मिले हुए हैं उन आजानुबाहु, मेघश्याम, नाना प्रकारके अलंकारोंसे विभूषित तथा विशाल जटाजूटधारी श्रीरामचन्द्रजीका ध्यान करे।

श्रीरघुनाथजीका चरित्र सौ करोड़ विस्तारवाला है और उसका एक-एक अक्षर भी मनुष्योंके महान् पापोंको नष्ट करनेवाला है ⁠।⁠।⁠१⁠।⁠। जो नीलकमलदलके समान श्यामवर्ण, कमलनयन, जटाओंके मुकुटसे सुशोभित, हाथोंमें खड्‌ग, तूणीर, धनुष और बाण धारण करनेवाले, राक्षसोंके संहारकारी तथा संसारकी रक्षाके लिये अपनी लीलासे ही अवतीर्ण हुए हैं, उन अजन्मा और सर्वव्यापक भगवान् रामका जानकी और लक्ष्मणजीके सहित स्मरणकर प्राज्ञ पुरुष इस सर्वकामप्रदा और पापविनाशिनी रामरक्षाका पाठ करे। मेरे सिरकी राघव और ललाटकी दशरथात्मज रक्षा करें ⁠।⁠।⁠२-४⁠।⁠। कौसल्यानन्दन नेत्रोंकी रक्षा करें, विश्वामित्रप्रिय कानोंको सुरक्षित रखें तथा यज्ञरक्षक घ्राणकी और सौमित्रिवत्सल मुखकी रक्षा करें ⁠।⁠।⁠५⁠।⁠। मेरी जिह्वाकी विद्यानिधि, कण्ठकी भरतवन्दित, कन्धोंकी दिव्यायुध और भुजाओंकी भग्नेशकार्मुक (महादेवजीका धनुष तोड़नेवाले) रक्षा करें ⁠।⁠।⁠६⁠।⁠। हाथोंकी सीतापति, हृदयकी जामदग्न्यजित् (परशुरामजीको जीतनेवाले), मध्यभागकी खरध्वंसी (खर नामके राक्षसका नाश करनेवाले) और नाभिकी जाम्बवदाश्रय (जाम्बवान्‌के आश्रयस्वरूप) रक्षा करें ⁠।⁠।⁠७⁠।⁠। कमरकी सुग्रीवेश (सुग्रीवके स्वामी), सक्थियोंकी हनुमत्प्रभुऔर ऊरुओंकी राक्षसकुलविनाशक रघुश्रेष्ठ रक्षा करें ⁠।⁠।⁠८⁠।⁠। जानुओंकी सेतुकृत् जंघाओंकी दशमुखान्तक (रावणको मारनेवाले), चरणोंकी विभीषणश्रीद (विभीषणको ऐश्वर्य प्रदान करनेवाले) और सम्पूर्ण शरीरकी श्रीराम रक्षा करें ⁠।⁠।⁠९⁠।⁠। जो पुण्यवान् पुरुष रामबलसे सम्पन्न इस रक्षाका पाठ करता है वह दीर्घायु, सुखी, पुत्रवान्, विजयी और विनयसम्पन्न हो जाता है ⁠।⁠।⁠१०⁠।⁠। जो जीव पाताल, पृथ्वी अथवा आकाशमें विचरते हैं और जो छद्मवेशसे घूमते रहते हैं वे रामनामोंसे सुरक्षित पुरुषको देख भी नहीं सकते ⁠।⁠।⁠११⁠।⁠।

राम’, ‘रामभद्र’, ‘रामचन्द्र’ इन नामोंका स्मरण करनेसे मनुष्य पापोंसे लिप्त नहीं होता तथा भोग और मोक्ष प्राप्त कर लेता है ⁠।⁠।⁠१२⁠।⁠। जो पुरुष जगत्‌को विजय करनेवाले एकमात्र मन्त्र रामनामसे सुरक्षित इस स्तोत्रको कण्ठमें धारण करता है (अर्थात् इसे कण्ठस्थ कर लेता है) सम्पूर्ण सिद्धियाँ उसके हस्तगत हो जाती हैं ⁠।⁠।⁠१३⁠।⁠। जो मनुष्य वज्रपंजर नामक इस रामकवचका स्मरण करता है उसकी आज्ञाका कहीं उल्लंघन नहीं होता और उसे सर्वत्र जय और मंगलकी प्राप्ति होती है ⁠।⁠।⁠१४⁠।⁠। श्रीशंकरने रात्रिके समय स्वप्नमें इस रामरक्षाका जिस प्रकार आदेश दिया था उसी प्रकार प्रातःकाल जागनेपर, बुधकौशिकने इसे लिख दिया ⁠।⁠।⁠१५⁠।⁠। जो मानो कल्पवृक्षोंके बगीचे हैं तथा समस्त आपत्तियोंका अन्त करनेवाले हैं, जो तीनों लोकोंमें परम सुन्दर हैं वे श्रीमान् राम हमारे प्रभु हैं ⁠।⁠।⁠१६⁠।⁠। जो तरुण अवस्थावाले, रूपवान्, सुकुमार, महाबली, कमलके समान विशाल नेत्रवाले, चीरवस्त्र और कृष्णमृगचर्मधारी, फल-मूल आहार करनेवाले, संयमी, तपस्वी, ब्रह्मचारी, सम्पूर्ण जीवोंको शरण देनेवाले, समस्त धनुर्धारियोंमें श्रेष्ठ और राक्षसकुलका नाश करनेवाले हैं वे रघुश्रेष्ठ दशरथकुमार राम और लक्ष्मण दोनों भाई हमारी रक्षा करें ⁠।⁠।⁠१७-१९⁠।⁠। जिन्होंने सन्धान किया हुआ धनुष ले रखा है, जो बाणका स्पर्श कर रहे हैं तथा अक्षय बाणोंसे युक्त तूणीर लिये हुए हैं वे राम और लक्ष्मण मेरी रक्षा करनेके लिये मार्गमें सदा ही मेरे आगे चलें ⁠।⁠।⁠२०⁠।⁠। सर्वदा उद्यत, कवचधारी, हाथमें खड्‌ग लिये,धनुष-बाण धारण किये तथा युवा अवस्थावाले भगवान् राम लक्ष्मणजीके सहित आगे-आगे चलकर हमारे मनोरथोंकी रक्षा करें ⁠।⁠।⁠२१⁠।⁠। (भगवान्‌का कथन है कि) राम, दाशरथि, शूर, लक्ष्मणानुचर, बली, काकुत्स्थ, पुरुष, पूर्ण, कौसल्येय, रघूत्तम, वेदान्तवेद्य, यज्ञेश, पुरुषोत्तम, जानकीवल्लभ, श्रीमान् और अप्रमेयपराक्रम—इन नामोंका नित्यप्रति श्रद्धापूर्वक जप करनेसे मेरा भक्त अश्वमेध-यज्ञसे भी अधिक फल प्राप्त करता है, इसमें कोई सन्देह नहीं ⁠।⁠।⁠२२-२४⁠।⁠। जो लोग दूर्वादलके समान श्यामवर्ण, कमलनयन, पीताम्बरधारी, भगवान् रामका इन दिव्य नामोंसे स्तवन करते हैं वे संसारचक्रमें नहीं पड़ते ⁠।⁠।⁠२५⁠।⁠। लक्ष्मणजीके पूर्वज, रघुकुलमें श्रेष्ठ, सीताजीके स्वामी, अति सुन्दर, ककुत्स्थकुलनन्दन, करुणासागर, गुणनिधान, ब्राह्मणभक्त, परम धार्मिक, राजराजेश्वर, सत्यनिष्ठ, दशरथपुत्र, श्याम और शान्तमूर्ति, सम्पूर्ण लोकोंमें सुन्दर, रघुकुलतिलक, राघव और रावणारि भगवान् रामकी मैं वन्दना करता हूँ ⁠।⁠।⁠२६⁠।⁠। राम, रामभद्र, रामचन्द्र, विधातृस्वरूप, रघुनाथ प्रभु सीतापतिको नमस्कार है ⁠।⁠।⁠२७⁠।⁠। हे रघुनन्दन श्रीराम! हे भरताग्रज भगवान् राम! हे रणधीर प्रभु राम! आप मेरे आश्रय होइये ⁠।⁠।⁠२८⁠।⁠। मैं श्रीरामचन्द्रके चरणोंका मनसे स्मरण करता हूँ, श्रीरामचन्द्रके चरणोंका वाणीसे कीर्तन करता हूँ, श्रीरामचन्द्रके चरणोंको सिर झुकाकर प्रणाम करता हूँ तथा श्रीरामचन्द्रके चरणोंकी शरण लेता हूँ। ⁠।⁠।⁠२९⁠।⁠। राम मेरी माता हैं, राम मेरे पिता हैं, राम स्वामी हैं और राम ही मेरे सखा हैं। दयामय रामचन्द्र ही मेरे सर्वस्व हैं; उनके सिवा और किसीको मैं नहीं जानता—बिलकुल नहीं जानता ⁠।⁠।⁠३०⁠।⁠। जिनकी दायीं ओर लक्ष्मणजी, बायीं ओर जानकीजी और सामने हनुमान्‍जी विराजमान हैं उन रघुनाथजीकी मैं वन्दना करता हूँ ⁠।⁠।⁠३१⁠।⁠। जोसम्पूर्ण लोकोंमें सुन्दर, रणक्रीडामें धीर, कमलनयन, रघुवंशनायक, करुणामूर्ति और करुणाके भण्डार हैं उन श्रीरामचन्द्रजीकी मैं शरण लेता हूँ ⁠।⁠।⁠३२⁠।⁠। जिनकी मनके समान गति और वायुके समान वेग है, जो परम जितेन्द्रिय और बुद्धिमानोंमें श्रेष्ठ हैं उन पवननन्दन वानराग्रगण्य श्रीरामदूतकी मैं शरण लेता हूँ ⁠।⁠।⁠३३⁠।⁠। कवितामयी डालीपर बैठकर मधुर अक्षरोंवाले ‘राम-राम’ इस मधुर नामको कूजते हुए वाल्मीकिरूप कोकिलकी मैं वन्दना करता हूँ ⁠।⁠।⁠३४⁠।⁠। आपत्तियोंको हरनेवाले तथा सब प्रकारकी सम्पत्ति प्रदान करनेवाले लोकाभिराम भगवान् रामको बारंबार नमस्कार करता हूँ ⁠।⁠।⁠३५⁠।⁠। ‘राम-राम’ ऐसा घोष करना सम्पूर्ण संसारबीजोंको भून डालनेवाला, समस्त सुख-सम्पत्तिकी प्राप्ति करानेवाला तथा यमदूतोंको भयभीत करनेवाला है ⁠।⁠।⁠३६⁠।⁠। राजाओंमें श्रेष्ठ श्रीरामजी सदा विजयको प्राप्त होते हैं। मैं लक्ष्मीपति भगवान् रामका भजन करता हूँ। जिन रामचन्द्रजीने सम्पूर्ण राक्षससेनाका ध्वंस कर दिया था, मैं उनको प्रणाम करता हूँ। रामसे बड़ा और कोई भी आश्रय नहीं है। मैं उन रामचन्द्रजीका दास हूँ। मेरा चित्त सदा राममें ही लीन रहे; हे राम! आप मेरा उद्धार कीजिये ⁠।⁠।⁠३७⁠।⁠। (श्रीमहादेवजी पार्वतीजीसे कहते हैं—) हे सुमुखि! रामनाम विष्णुसहस्रनामके तुल्य है। मैं सर्वदा ‘राम, राम, राम’ इस प्रकार मनोरम राम-नाममें ही रमण करता हूँ ⁠।⁠।⁠३८⁠।⁠।




 

रविवार, 24 जनवरी 2021

Partiality of Apex Court



 Dear Supreme court Judges , 
 1. A party Wins Lok sabha elections gets 303 seats with massive 46% vote share. 
 2. Then they Win State after state to get majority in Rajya Sabha 
 3. They Pass a bill in Both House gets President's approval & it become law. 
        
                 Some 20-25 K of 1 state sits on road for a month , then you stay the LAW What a mockery😢 of the democratic process ? Where are our protectors of democracy now ?? Those who were screaming that democracy is being murdered , not so long ago ?? The Supreme Court today said, "We are trying to solve the problem in accordance with the law." Hello Sir jee! Your job is not to solve a problem. That would mean you don't want to annoy any party. You want to please everyone. Sorry! you are not here to please people. You are here to interpret existing law and pronounce a judgment. Your job is to say who is right and who is wrong. That's all. Nothing more. Nothing less. But you didn't do that. What do you do? From this country of 130 crore people, you hand pick four people and ask them to tell you what is their opinion about these laws. And then you would ask the govt to implement their opinion. You would ask the govt elected by 130 crore people to implement the opinion of four people. The wish of 130 crore people expressed through their representatives in the parliament is insignificant for you. Dear Supreme Court ! If a committee can decide how this country should be governed, why bother about an Election Commission and why should millions of voters vote ? Scrap the Parliament. ( save hundreds of crores !) And form various committees of experts , who will tell you how this country should be governed. Or, you can ask the government that before they introduce a bill in the Parliament, they must first bring it before you, and seek your pre-approval. Only after that, you or a committee formed by you have approved it, it can be taken to the Parliament for vote. That will save time and effort of a lot of people. But you won't do that. You want to take over the power of the parliament. But obviously , you don't want to be seen doing it. By the way, yesterday, you said that you have received many petitions against the farm laws but you haven't received a single petition supporting the law. I would hold it as the most stupid argument ever made by the apex court in its entire history. I mean, what kind of an idiotic argument is this? Let me ask you. The population of this country is 130 crore. We have seen only a few lakh protesting against the laws at Delhi borders. Even if we take the number of people we have seen participate in various dharna , pradarshans across the country as 1 crore, there are still 129 crore people in this country who we never saw taking part in these protests. So can we say that 129 crore people are supporting these laws? Can we? No, we can't. That will be a silly argument. Dear Supreme Court ! Please don't allow people to make a mockery of yourself. I hope, you know that the protestors have rejected your verdict even before you have given it. You know it very well. These people don't believe in courts. Didn't you hear the same people say at Shaheen Bagh last year that they don't believe in Supreme Court and they would take over public place to bring the government to its knees? Don't you remember that? You certainly do. Then why don't you pass judgments? Why do you dilly dally and let people openly disobey you? Please do what you are supposed to do. Don't do things that you are not supposed to do. Your job is not to solve a problem to everyone's satisfaction. Your job is to pass judgments, interpret the law , not stay it ! So just do that. You have no business forming a committee to approve or reject a legislation passed by the legislative assembly. Nor are you God !!

रक्षा बंधन 2023 बुधवार, 30 अगस्त

 रक्षाबन्धन भारतीय धर्म संस्कृति के अनुसार रक्षाबन्धन[ का त्योहार श्रावण माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। यह त्योहार भाई-बहन को स्नेह की डो...